याद आती है वो मायके की रातें,
वो बहन से रातों में ढेरों बतियाना,
बीमारी में माँ का रात भर जागना,
पापा की वो कहानियाँ , माँ की वो लोरियां,
अँधेरे में डरना और माँ के साथ लिपट कर सोना,
बहन के साथ का रिश्ता सुहाना,
ढेरों गाने और हँसना हँसाना,
परीक्षाओं का तो किस्सा पुराना,
बहन, माँ और पापा का वो साथ
जैसे रात ना हो, बस हो कोई दिन,
अब सब कुछ बेबस सा लगता है,
रात भी पराई सी नज़र आती है,
थक चूर के बस गुज़र ही जाती है.